भारतीय संविधान
उच्चतम न्यायालय के प्रमुख वादों में निर्णय
शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ(1952)-
- संविधान संशोधन की शक्ति जिसमें मूल अधिकार भी शामिल हैं, अनुच्छेद 368 में निहित है।
सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य(1965)-
- मूल अधिकारों में संशोधन का अधिकार अनुच्छेद 368 में ही माना गया।
गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967)-
- संसद को मूल अधिकारों में कमी या समाप्त करने का अधिकार नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय पर उसके पूर्व में किए गए निर्णय बाध्यकारी नहीं हैं।
- अनुच्छेद 368 केवल प्रक्रिया बताता है क्षेत्र नहीं है।
केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य (1973)-
- अनुच्छेद 368 द्वारा मूल अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
- संसद को मूलअधिकार सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन का अधिकार है, लेकिन आधारभूत ढ़ाँचे को बनाये रखना आवश्यक है।
संघ और राज्य
Federation and State
- भारतीय संविधान में भारत को ‘राज्यों का संघ’ (Union of the State) कहा गया है।
संघ (Federation) शब्द का कहीं प्रयोग नहीं किया गया है।
- डी डी बसु के अनुसार भारत का संविधान एकात्मक तथा संघात्मक का सम्मिश्रण है।
के सी व्हीयर के अनुसार संघीय कम और एकात्मक अधिक है।
अर्थात् यह अर्द्ध संघीय है।
- भारत में वर्तमान में 28 राज्य और 7 संघ राज्य क्षेत्र है, संघ राज्य क्षेत्र में दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का अलग दर्जा प्रदान किया गया है।
- शक्तियों का केंद्र तथा राज्यों के बीच विभाजन किया गया है।
केंद्र सूची में 97 विषय, समवर्ती सूची में 47 तथा राज्य सूची में 66 विषय सम्मिलित हैं।
- भारतीय संघ में अवशिष्ट विषय (Residuary Power) केंद्र सरकार के पास है।